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हाइलाइट्स
सफदरजंग अस्पताल में अलग ब्लड ग्रुप वाले डोनर की किडनी मरीज को ट्रांसप्लांट की गई है.
अभी तक ब्लड ग्रुप मैच करके ही किडनी प्रत्योरोपित की जाती थी ताकि मरीज का शरीर इसे स्वीकार कर सके.
free Kidney Transplant: किडनी डोनर और रिसीवर के अलग-अलग ब्लड ग्रुप के चलते ट्रांसप्लांट न करा पा रहे मरीजों के लिए राहत की खबर है. अब उन्हें किसी भी ब्लड ग्रुप की किडनी ट्रांसप्लांट की जा सकेगी, साथ ही इसके लिए मरीजों को पैसा भी खर्च नहीं करना पड़ेगा. दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में पहली बार अलग ब्लड ग्रुप वाले गुर्दे का प्रत्यारोपण किया गया है जो सफल भी रहा है. जिसमें मरीज का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव था, जबकि किडनी देने वाले डोनर का रक्त समूह एबी पॉजिटिव था. अभी तक ब्लड ग्रुप मैच करके ही किडनी ट्रांसप्लांट की जाती थी.
सफदरजंग अस्पताल की एमएस डॉ. वंदना तलवार ने बताया कि 6 फरवरी को अस्पताल में पहला एबीओ इन्कंपेटिबल किडनी प्रत्यारोपण किया गया है. वैसे तो अस्पताल में साल 2013 में किडनी प्रत्यारोपण की सुविधा शुरू की गई थी लेकिन यह पहली हुआ है जब गुर्दा दाता और प्राप्तकर्ता के रक्त समूह अलग-अलग थे और प्रत्यारोपण किया गया. यह ट्रांसप्लांट सफल हुआ है. किडनी के सभी पैरामीटर सामान्य होने के बाद मरीज को छुट्टी दे दी गई है.
बता दें कि सफदरजंग अस्पताल में भर्ती 43 साल के पति का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव था जबकि किडनी देने को तैयार 28 साल की पत्नी का ब्लड ग्रुप एबी पॉजिटिव था. मरीज को दो साल पहले ही पता चला था कि उसकी किडनी फेल हो गई है और 6 महीने से मरीज डायलिसिस पर था. हालांकि अलग रक्त समूह के बावजूद इस चुनौती को डॉक्टरों ने स्वीकारा और ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया की गई.
इस बारे में यूरोलॉजी के प्रोफेसर और हेड डॉ. पवन वासुदेवा और नेफ्रोलॉजी के प्रोफेसर और यूनिट हेड डॉ. राजेश कुमार ने बताया, ‘इस केस में अनोखी चुनौतियां सामने आईं क्योंकि पति के शरीर में पहले से ही एंटीबॉडीज थीं जो पत्नी की किडनी को अस्वीकार कर सकती थीं और प्रत्यारोपण विफल हो सकता था. हालांकि पति में एंटीबॉडी के उच्च स्तर को कम करने के लिए डिसेन्सिस्टाइजेशन की एक प्रक्रिया की गई ताकि प्रत्यारोपण का प्रयास किया जा सके.
अस्पताल में एबीओ किडनी ट्रांसप्लांट के सफल होने पर वीएमएमसी और एसजेएच की प्रिंसिपल डॉ. गीतिका खन्ना ने ट्रांसप्लांट टीम और नेफ्रोलॉजी हेड डॉ. हिमांशु वर्मा, एनेस्थीसिया सपोर्ट देने वाले डॉ. सुशील गुरिया की कोशिशों को मरीजों के लिए बेहतर बताया और भविष्य में ऐसे और सफल ट्र्रांसप्लांट की उम्मीद जताई.
दुर्भाग्य से मरीज को दो साल पहले किडनी फेल्योर का पता चला था और वह 6 महीने से डायलिसिस पर था। पूरे ट्रांसप्लांट की जटिलता यह थी कि जहां पत्नी का ब्लड ग्रुप एबी पॉजिटिव था, वहीं पति का ग्रुप बी पॉजिटिव था। यूरोलॉजी के प्रोफेसर और प्रमुख डॉ. पवन वासुदेवा ने कहा, इससे अनोखी चुनौतियाँ सामने आईं क्योंकि पति के शरीर में पहले से ही एंटीबॉडीज थीं जो पत्नी की किडनी को अस्वीकार कर सकती थीं और प्रत्यारोपण विफल हो सकता था। नेफ्रोलॉजी के प्रोफेसर और यूनिट हेड डॉ. राजेश कुमार ने कहा, पति में एंटीबॉडी के उच्च स्तर को कम करने के लिए डिसेन्सिस्टाइजेशन की एक प्रक्रिया की गई ताकि प्रत्यारोपण का प्रयास किया जा सके।
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Tags: Health News, Lifestyle, Trending news
FIRST PUBLISHED : February 14, 2024, 06:32 IST
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