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ब्रेन स्ट्रोक होने पर जल्द पहुंचे अस्पताल, नहीं तो पढ़ सकता है भारी

ब्रेन स्ट्रोक होने पर जल्द पहुंचे अस्पताल, नहीं तो पढ़ सकता है भारी

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उधव कृष्ण/पटना. अस्पताल पहुंचने में देरी राज्य के स्ट्रोक यानी लकवा पीड़ितों की जान पर खतरे में पड़ रही है. गौरतलब है कि तकरीबन 45% स्ट्रोक पीड़ित ब्रेन हैमरेज के शिकार होकर या तो जान गंवा देते हैं या फिर पूरी जिंदगी वे विकलांगता के शिकार हो जाते हैं. जबकि समय पर अस्पताल पहुंचने वाले 55% स्ट्रोक पीड़ित मरीजों की ना सिर्फ जान बच रही है बल्कि उचित इलाज के बाद उन्हें विकलांगता से भी मुक्ति मिल रही है.

आईसीएमएआर की मदद से आईजीआईएमएस के न्यूरोलॉजी विभाग में चल रहे शोध के आधार पर यह निष्कर्ष निकला है. विभागाध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार ने बताया कि लकवा के अटैक के बाद अस्पताल पहुंचने में जितनी ज्यादा देर होती है, मरीज के इलाज में उतनी ही ज्यादा दिक्कत आती है. जनवरी से पिछले शनिवार 28 अक्टूबर तक ऐसे 177 स्ट्रोक पीड़ित आए, जिनको स्ट्रोक का लक्षण शुरू हुए 72 घंटे हो चुके थे. इनमें 102 में स्किमिक स्ट्रोक था, 73 में ब्रेन हैमरेज पाया गया यानी खून नसों से रिस चुका था. जबकि, 02 में कॉर्टिकल वेनस थ्रम्बोसिस पाया गया. वहीं, जुलाई से अब तक स्ट्रोक के लक्षण आने के 48 घंटे यानी दो दिन के भीतर पहुंचने वाले 60 मरीज थे. उनमें से 35 में स्किमिक स्ट्रोक और 25 में ब्रेन हैमरेज पाया गया. इस आंकड़े से यह साबित होता है कि स्किमिक स्ट्रोक देरी की वजह से हैमरेज में बदलता है. स्ट्रोक के हैमरेज में बदलने के बाद मरीजों के इलाज में मुश्किल आती है. वहीं, मरीजों से जुड़े आंकड़े को आईसीएमआर से साझा किया जा रहा है. इसके बाद एक गाइडलाइन बनेगी.

ये लक्षण महसूस होने पर पहुंचे अस्पताल
बताया जाता है कि अब तक के शोध के आधार पर अंग्रेजी शब्द बीईएफएएसटी (बैंलेंस, आई, फेस, आर्म, स्पीच, टाइम) का नारा दिया गया है. यानी जब शारीरिक संतुलन बिगड़ने लगे, आंखों की रोशनी कमजोर दिखे, चेहरा एक ओर अचानक लटक जाए, बांहों में कमजोरी और बोलने में लड़खड़ाहट महसूस होने लगे तो फौरन अस्पताल पहुंचना चाहिए.

शोध से इलाज में होगी आसानी
स्ट्रोक्स यानी लकवा पर शोध के बाद इसका और प्रभावी इलाज हो पाएगा. आईसीएमआर और केंद्र सरकार की मदद से देशभर के 22 राज्यों के संस्थानों में स्ट्रोक पर शोध हो रहा है. आईजीआईएमएस में अब तक 237 पीड़ितों पर शोध हो चुका है. उसमें पीड़ितों का अस्पताल पहुंचने में लगने वाला समय, प्रारंभिक जांच में उनकी स्थिति, इलाज शुरू होने ओर लगने वाली सुई-दवाइयों का असर और इलाज के बाद मरीज की स्थिति का सारा रिकॉर्ड रखा जा रहा है. डॉ. अशोक कुमार ने बताया कि बिहार-झारखंड के लिए आईजीआईएमएस को नोडल एजेंसी बनाया गया है.

Tags: Bihar News, Health News, Local18, PATNA NEWS

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